Pt. Madan Mohan Malviya Biography : आप सब ने मदन मोहन मालवीय के बारे में तो जरुर सुना होगा। अगर आप उनके बारे में पूरी जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आज की यह खबर आपके लिए बहुत जरूरी है। आज हम आपको Pt. Madan Mohan Malviya Biography के बारे में विस्तार में बताएंगे।
आज हम आपको Pt. Madan Mohan Malviya के जन्म के बारे में उनका जन्म कहां हुआ था उनकी मृत्यु कब हुई थी उनके माता-पिता कौन थे इन सभी प्रश्नों के उत्तर भी देंगे और उनके जीवन शैली के बारे में भी पूरी जानकारी आपको देंगे। आईए जानते हैं मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय।
Pt. Madan Mohan Malviya Biography
मदन मोहन मालवीय का नाम पूरे देश में प्रसिद्ध है। मदन मोहन उन महान विभूतियां में से एक हैं जिन्होंने राष्ट्र निर्माण का सपना देखा और उसे पूरा भी किया। मदन मोहन पेशे से एक पत्रकार, वकील, समाज सुधारक, भारतीय संस्कृति के रक्षक और राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक थे।
मदन मोहन भारत के पहले और अंतिम वह इंसान थे, जिन्होंने महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया था। देश के बापू महात्मा गांधी जी ने मदन मोहन को भारत निर्माता की संज्ञा भी दी थी। वहीं देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मदन मोहन को एक ऐसी महान आत्मा कहा जिन्होंने आधुनिक भारतीय राष्ट्रीयता की नींव रखी थी।
Pt. Madan Mohan Malviya का जीवन परिचय
आप सबको बता दे की मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद के प्रयागराज में हुआ था। मदन मोहन के पिताजी का नाम पंडित बैजनाथ और माता जी का नाम श्रीमती भुना देवी था।
अगर हम उनके पूर्वजों की बात करें तो इनके पूर्वज मालवा प्रांत के रहने वाले थे। इसलिए इन्हें मालवीय कहा जाता था। मदन मोहन एक बहुत ही धार्मिक परिवार के सदस्य थे। इसलिए मदन मोहन को धार्मिक संस्कार विरासत में मिले थे। मदन मोहन के पिता और दादा भी धार्मिक प्रचार करते थे।
इसलिए मदन मोहन को भी धार्मिक प्रचार करना अच्छा लगता था। लेकिन कुछ समय बाद कुछ ऐसी परिस्थितियों आई कि उन्हें अध्यापन में आना पड़ा। उनके धार्मिक संस्कारों ने उनके व्यक्तित्व पर काफी गहरा असर छोड़ा।
मदन मोहन की शिक्षा
मदन मोहन ने अपनी मैट्रिक तक की परीक्षा और पढ़ाई प्रयागराज में पूर्ण की। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मदन मोहन ने कोलकाता विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। जहां पर उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद मदन मोहन इलाहाबाद में आकर विश्वविद्यालय में अध्यापन करने लगे।
मदन मोहन अपने व्यवहार से पूरे विद्यालय में छा गए। उनके पढ़ने की विशेषता ने उन्हें विद्यार्थियों के बीच लोकप्रिय बना दिया। मदन मोहन के अंदर काफी सारी अद्भुत प्रतिभा थी। उनका कार्य क्षेत्र केवल अध्ययन या अध्यापन तक सीमित नहीं था। अध्ययन अध्यापन के अलावा मदन मोहन एक बहुत बड़े राजनीतिज्ञ भी थे।
मदन मोहन मालवीय की राजनीतिक भागीदारी
मदन मोहन ने इलाहाबाद से अपने स्नातक की परीक्षा पूर्ण करने के बाद विद्यालय में अध्यापन का कार्य शुरू किया। उसके बाद मदन मोहन राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाने लगे। राजनीति की शुरुआत मदन मोहन ने 1886 ईस्वी में की थी।
उस दौरान उन्हें अपने आदित्य राम भट्टाचार्य के साथ कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में भाग लेने का अवसर मिला। इतना ही नहीं उनकी मेहनत और लगन से उन्होंने कांग्रेस में अपनी एक विशेष जगह बनाई और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका भी निभाई। मदन मोहन को चार बार कांग्रेस का अध्यक्ष भी चुना गया।
सबसे पहले 1909 उसके बाद 1918, 1932 और 1933 में उन्होंने कांग्रेस की अध्यक्षता की। मदन मोहन ने कांग्रेस के नरम दल और गरम दल के बीच कड़ी का काम किया। उन्होंने राजनीति स्तर पर अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और स्वतंत्रता संग्राम के पथ प्रदर्शक बने।
इतना ही नहीं आगे चलकर मदनमोहन ने काफी सारी उपलब्धियां हासिल की। मदन मोहन का स्वभाव बहुत ही शालीन, विनम्र, उदारवादी और सरलता था। हमेशा सादा जीवन व्यतीत करने वाले मदन मोहन की पहचान एक सफल शिक्षा विद पत्रकार संपादक समाज सुधारक वकील और एक कुशल वक्ता के रूप में हुई।
मदन मोहन ने 1881 ईस्वी में कांग्रेस अधिवेशन में भाषण दिया उस दौरान काला कंकर के राजा रामपाल सिंह मदन मोहन के भाषण से काफी प्रभावित हुए और उन्हें हिंदोस्तान नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का संपादक बनने के लिए अनुरोध किया।
मदन मोहन मालवीय का पत्रकारिता में योगदान
मदन मोहन मालवीय ने पत्रकारिता में भी अपना योगदान दिया है। सबसे पहले जब मदन मोहन को राजा रामपाल सिंह के द्वारा प्रस्ताव मिला तब मदन मोहन ने उस प्रस्ताव को स्वीकार किया और हिंदुस्तान में अपना योगदान दिया। हिंदुस्तान पत्रकारिता को मदन मोहन ने लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया।
तत्कालीन सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर उनके द्वारा लिखे गए निर्भीक लिखो और टिप्पणियों को भी लोगों ने बहुत सराहा। इतना ही नहीं मदन मोहन ने बाद में इंडियन ओपिनियन लीडर, मर्यादा, सनातन धर्म, हिंदुस्तान टाइम तथा अभ्युदय का संपादन भी किया।
इन सब पत्रकारिता से मदन मोहन ने भारतीय पत्रकारिता को नया आयाम प्रदान किया और अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। इतना ही नहीं मदन मोहन ने पत्रकारिता में काम करते-करते अपनी वकालत की पढ़ाई को भी जारी रखा और पत्रकारिता के बाद वकालत में भी अपनी प्रतिभा का लोहा बनवाया। 1899 ईस्वी में मदन मोहन ने वकालत की परीक्षा पास की और हाई कोर्ट में प्रेक्टिस करना शुरू कर दिया।
मदन मोहन ने कड़ी मेहनत से वकालत की
वकालत करने के बाद भी कभी मदन मोहन झूठे मुकदमों का हिस्सा नहीं बने। मदन मोहन अपने नियमों और सिद्धांतों के पक्के थे। इसलिए वह हमेशा झूठे मुकदमों से दूर रहे। मदन मोहन ने अपनी वकालत का कार्य कुछ समय ही किया उसके पश्चात वह सामाजिक कार्यों में व्यस्त हो गए।
सामाजिक कार्य में व्यस्त होने के बाद उन्हें अपने वकालत छोड़नी पड़ी। परंतु जब गोरखपुर के ऐतिहासिक चोरी चोरा कांड में 170 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई तब एक बार फिर से मदन मोहन ने अपनी वकालत शुरू की।
उस दौरान मदन मोहन को वकालत छोड़े 20 वर्ष हो चुके थे। 20 वर्ष के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में मदन मोहन ने अद्भुत बहस की और डेढ़ सौ लोगों को फांसी होने से बचा लिया।
उन्होंने डेढ़ सौ लोगों के खिलाफ इतनी अच्छी वकालत की कि उनकी वकालत से न्यायाधीश भी प्रभावित हो गए और अदालत में ही मदन मोहन की तारीफ की और केस जीत जाने पर उन्हें खूब बधाई दी। इतना ही नहीं मदन मोहन ने विधवाओं के पुनर्विवाह का भी समर्थन किया और बाल विवाह को खत्म करने के लिए उसका विरोध किया।
मदन मोहन का समाज तथा धर्म में योगदान
अगर हम मदन मोहन की समाज या धर्म में योगदान की बात करें तो ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां पर मदन मोहन ने अपना योगदान नहीं दिया। समाज सुधार के क्षेत्र में काम करते हुए उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए भी कार्य किया।
श्रीमद् भागवत और गीता के विख्यात व्याख्याकार के रूप में भी मदन मोहन की आध्यात्मिक ऊर्जा और बौद्धिक कौशल को भी लोगों ने नमन किया। मदन मोहन दक्षिणपंथी हिंदू महासभा के आरंभिक नेताओं में से एक थे इन्होंने हमेशा उदारवादी हिंदुस्तान का समर्थन किया।
गंगोत्री से निकली गंगा के लिए चलाया अभियान
मदन मोहन जी का गंगा के प्रति अलग ही प्रेम और श्रद्धा थी। इसलिए जब अंग्रेज सरकार ने गंगोत्री से निकली गंगा की धारा को अवरुद्ध करने की कोशिश की तब उन्होंने गंगा मा सभा की तरफ से व्यापक सत्याग्रह अभियान को चलाया।
उनके अभियान के आगे अंग्रेज सरकार को भी झुकना पड़ा और उत्तराखंड में गंगा पर जो भी बंद या फैक्ट्री बनने का फैसला लिया गया था उसे भी रद्द कर दिया गया। मदन मोहन ने अनेक रूपों में देश की सेवा की और अपने जीवन के अंत तक किसी ने किसी रूप में सक्रिय रहे।
उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भी अपना एक अहम योगदान दिया। मदन मोहन का कहना था कि शिक्षा के बिना मनुष्य पशु तुल्य होता है। मदन मोहन ने देश के युवक व युवतियों को उच्च शिक्षा देने के लिए एक विश्वविद्यालय की भी स्थापना की, जिसके लिए 4 फरवरी 1916 के दिन उन्होंने बनारस में हिंदू विश्वविद्यालय की नींव राखी।
यह स्कूल अभी भी 30000 विद्यार्थियों और 2000 प्रतिभाशाली अध्यापकों द्वारा चलाए जा रहा है। यह विश्वविद्यालय एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विद्यालय है। इस विश्वविद्यालय को देश-विदेश के प्रतिष्ठा शिक्षा संस्थानों में गिना जाता है।
मदन मोहन ने चलाया एक हिंदू विश्वविद्यालय
मदन मोहन मालवीय ने शिक्षा में भी अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने नए केवल विज्ञान की विभिन्न साक्षात शाखा और पद्धतियों के बारे में बताया, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा वेद शास्त्र दर्शन साहित्य और कल के अध्ययन के बारे में भी लोगों को जागरूक किया और अपने द्वारा चलाए गए विश्वविद्यालय में इन सब के बारे में विद्यार्थियों को जागरूक किया।
आज के समय में इस विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से लेकर वेद, उपनिषद, वैदिक, कर्मकांड, साहित्य आदि सभी भारतीय धारों पर पढ़ाई करवाई जाती है और देश-विदेश के विद्यार्थी इस विश्वविद्यालय में प्रवेश प्राप्त करने के लिए बड़ी मेहनत करते हैं।
कितना बड़ा है यह विश्वविद्यालय
अगर हम Pt. Madan Mohan Malviya के इस विश्वविद्यालय की बात करें तो यह विश्वविद्यालय लगभग 40060 एकड़ जमीन पर फैला हुआ है, जिसे स्थापित करना कोई सरल काम नहीं था। इस कठिन काम को भी मदन मोहन ने बहुत आसानी से पूरा किया।
इस कार्य के लिए उन्होंने तत्कालीन समय में एक करोड रुपए की धनराशि जुटाए और इससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि उन्होंने यह सारा धन दान के माध्यम से इकट्ठा किया। लगभग 12 से 13 साल तक देश के प्रत्येक दानी के यहां दस्तक दे देकर पैसा जोड़कर उन्होंने विश्वविद्यालय का निर्माण किया।
भिक्षाटन और अनुदान के रूप में मिले पैसे से ज्ञान का मंदिर खड़ा करने मोहन को किंग आफ बैगर्स यानी भिखारी का राजा भी कहा गया। मालवीय जी ने लगभग तीन दशक तक महाविद्यालय के पद भार को संभाला और इसकी वैचारिक नियम को सुदृढ़ किया।
कब हुआ मदन मोहन का निधन
मदन मोहन मालवीय जी का नाम जितना बड़ा है उससे भी कहीं ज्यादा बड़ी उनकी उपलब्धियां और योगदान है, जिनको शब्दों में व्यक्त करना बहुत मुश्किल है। रविंद्र नाथ टैगोर ने मदन मोहन को महामना का नाम दिया था। बाद में महात्मा गांधी ने भी इन्हें ‘महामना-अ मैन आफ लार्ज हार्ट’ कहकर सम्मानित किया था।
मदन मोहन ने अपना पूरा जीवन देश सेवा में समर्पित किया, परंतु स्वतंत्रत भारत में सांस लेने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त नहीं हुआ। 12 नवंबर 1946 को देश के महान विभूति महामना मदन मोहन मालवीय जी का निधन हो गया। इनकी जीवन शैली भारतीयों के लिए बहुत ही प्रेरणादायक है।
भारत हमेशा इस महान हस्ती का ऋणी रहेगा। मदन मोहन को सम्मानित करने के लिए भारत सरकार ने 25 दिसंबर 2014 को उनके 153 में जन्मदिन पर भारत रत्न से नवाजा। मदन मोहन को भारत रत्न देकर सरकार ने स्वयं और भारत रत्न को सम्मानित किया क्योंकि उनका जीवन चरित्र भारत रत्न से भी अधिक सम्माननीय है।
अगर हम भारत के देशवासी सच में मदन मोहन को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो हमें उनके लक्ष्य को पूरा करना होगा और अपने देश में शिक्षा संबंधित व्यवस्था को सुधारना होगा। हमें समाज के प्रत्येक वर्ग के बच्चे के लिए समुचित शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी, ताकि राष्ट्र निर्माण में सभी बच्चे बराबर का भागीदार बन सके और मदन मोहन के सपने को साकार कर सकें।
FAQ
Qns. मदन मोहन मालवीय क्यों प्रसिद्ध है?
Ans. महामना मदन मोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे।
Qns. मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न कब मिला?
Ans. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिसंबर 2014 को मदन मोहन मालवीय को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया।